Saturday, January 26, 2019

गज़ल

जुड़ती रहे कड़ी से कड़ी हर लम्हा एहसासों का
चलता रहे सिलसिला यूँही मुलाकातों का....

रु ब रु तुम हो न हो, रहे जिक्र तुम्हारी यादों का
चलता रहे सिलसिला यूँही मुलाकातों का....

ख्वाब लिए इन आँखों में रोज गुजरती रातों का
लौ जैसी जलती बुझती सुलग रही जज्बातों का

कोई गिला नहीं तुमसे "इन्दर",है ऐतबार तुम्हारे वादों का
चलता रहे सिलसिला यूँही मुलाकातों का...

"इन्दर भोले नाथ"

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