Friday, June 19, 2020

मैं हैरान हूँ

मैं हैरान हूं
यह सोच कर
वो चैन से
कैसे सोता है
क्या इस दुर्दशा
को देख कर
उसका जमीर
नहीं रोता है

उसकी आंखों के
सामने कई यातनाएं
कई सितम हुएं
उस मासूम पर

वो नि:शब्द हुए
खामोश रहा
जुल्म होते देखता
रहा उस मजलूम पर

वो रखवाला
बन कर आया था
खुद ही चीरहरण
करने लगा
खुद ही ताले तोड़कर
करोड़ों का गमन
करने लगा

है कंस से ज्यादा
क्रूर वो
रावण से ज्यादा
अभिमानी है
शकुनी सा वो
धूर्त है
दुर्योधन सा अज्ञानी है

एक नहीं कई
रूप हैं उसके
छांव भी उसके
धूप भी उसके

वह नर भी है
मादा भी है
इन सब से
ज्यादा भी है

वो चोर भी है
वो साधु भी
वो सच भी है
वो जादू भी

उसकी करतूतों
की मनमानी है
वो चोर
खानदानी है

है बाप की
सत्ता समझ रहा
बस मजलूमों
पर ही गरज रहा

मैं क्या नाम दूँ?
कई नाम हैं उसके
बस घिनौने
काम हैं उसके

© इंदर भोले नाथ




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