Saturday, July 11, 2020

ग़ज़ल

सबसे अलग और सबसे जुदा लिखता
तुम शब्द होती तो तुम्हें मैं बेइंतेहां लिखता

हर शाम लिखता हर सहर लिखता
बस इक तुम्हें ही मैं हर पहर लिखता

हर पन्ने पर सजी तुम कई किताब होती
तुम मुझ में बे-हद और बे-हिसाब होती

कभी तुम्हें गुल तो कभी गुलिश्तां लिखता
तुम शब्द होती तो तुम्हें मैं बेइंतेहां लिखता

हर नज्म हर गजल से तेरी ही खुश्बू आती
हर हर्फ़ में मेरे तुम, कुछ यूं रवां हो जाती

हर किस्से कहानियों में, मेरी जुबानियों मे
सिर्फ़ तुम्ही बसर करती मेरी निशानियों मे

कभी महबूब तो तुम्हें कभी खुदा लिखता
तुम शब्द होती तो तुम्हें मैं बेइंतेहां लिखता

© इंदर भोले नाथ
#6387948060
बलिया, उत्तर प्रदेश

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