गज़ल
इक हूर सी लगी मुझे,वो नूर सी लगी मुझे,
थी सादगी निगाह में,वो गुरुर सी लगी मुझे...
जो सादगी चेहरे पे थी,वो दिल में थी रमी हुई,
मदहोश हुआ मैं इस कदर,वो सुरूर सी लगी मुझे...
सफर युंही चलता रहा,नज़र में वो ढ़लता रहा,
मैं गुम सा हुआ कहीं, वो मसहूर सी लगी मुझे
इक अजनबी कि दास्ताँ,इक अजनबी सुना रहा,
थी पास मेरे फिर भी मगर,वो दुर सी लगी मुझे...
था कायल उसकी दिदार का,उसको भी खबर थी ये,
रहे इश्क़ से बे-खबर मेरे,वो मजबूर सी लगी मुझे
......इंदर भोले नाथ
इक हूर सी लगी मुझे,वो नूर सी लगी मुझे,
थी सादगी निगाह में,वो गुरुर सी लगी मुझे...
जो सादगी चेहरे पे थी,वो दिल में थी रमी हुई,
मदहोश हुआ मैं इस कदर,वो सुरूर सी लगी मुझे...
सफर युंही चलता रहा,नज़र में वो ढ़लता रहा,
मैं गुम सा हुआ कहीं, वो मसहूर सी लगी मुझे
इक अजनबी कि दास्ताँ,इक अजनबी सुना रहा,
थी पास मेरे फिर भी मगर,वो दुर सी लगी मुझे...
था कायल उसकी दिदार का,उसको भी खबर थी ये,
रहे इश्क़ से बे-खबर मेरे,वो मजबूर सी लगी मुझे
......इंदर भोले नाथ
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