कीचड़ में शनी धरा
झींगुरों की आवाज कानों मे गूंजती हुई
सांय सांय करती हुई काली रात
एक तरफ मेंढकों के टर्राने की आवाज
तो दूसरी तरफ सांपों के रंगने का चिन्ह
सच पूछो तो क्षण भर के लिए मुझे
अंदर तक कँपा देता था किंतु
तभी तुम्हारा प्रतिबिंब
हमारी आंखों में उभर आता था
और तुमसे मिलने की चाह
इन सारे कष्ट और बाधाओं को
दर-किनार करते हुए
हमें आगे बढ़ने का हौसला देता था
इसी हौसले को तो
त्याग-तपस्या और प्रेम कहते हैं
त्याग यानि भय का,
तपस्या यानि भय से विचलित न होना
और प्रेम यानी सारे बाधाओं को
दर-किनार करते हुए तुमसे मिलने आना
इंदर भोले नाथ
झींगुरों की आवाज कानों मे गूंजती हुई
सांय सांय करती हुई काली रात
एक तरफ मेंढकों के टर्राने की आवाज
तो दूसरी तरफ सांपों के रंगने का चिन्ह
सच पूछो तो क्षण भर के लिए मुझे
अंदर तक कँपा देता था किंतु
तभी तुम्हारा प्रतिबिंब
हमारी आंखों में उभर आता था
और तुमसे मिलने की चाह
इन सारे कष्ट और बाधाओं को
दर-किनार करते हुए
हमें आगे बढ़ने का हौसला देता था
इसी हौसले को तो
त्याग-तपस्या और प्रेम कहते हैं
त्याग यानि भय का,
तपस्या यानि भय से विचलित न होना
और प्रेम यानी सारे बाधाओं को
दर-किनार करते हुए तुमसे मिलने आना
इंदर भोले नाथ