Monday, May 27, 2024

तुमसे मिलने की चाहत

कीचड़ में शनी धरा 
झींगुरों की आवाज कानों मे गूंजती हुई 
सांय सांय करती हुई काली रात 
एक तरफ मेंढकों के टर्राने की आवाज 
तो दूसरी तरफ सांपों के रंगने का चिन्ह 
सच पूछो तो क्षण भर के लिए मुझे 
अंदर तक कँपा देता था किंतु 
तभी तुम्हारा प्रतिबिंब 
हमारी आंखों में उभर आता था 
और तुमसे मिलने की चाह 
इन सारे कष्ट और बाधाओं को 
दर-किनार करते हुए 
हमें आगे बढ़ने का हौसला देता था 
इसी हौसले को तो 
त्याग-तपस्या और प्रेम कहते हैं 
त्याग यानि भय का, 
तपस्या यानि भय से विचलित न होना 
और प्रेम यानी सारे बाधाओं को 
दर-किनार करते हुए तुमसे मिलने आना

इंदर भोले नाथ





जब चांद चुपके से

जब चांद चुपके से 
झील में उतर कर हमें देखेगा
जब ठंडी ठंडी हवाएं 
हमारे कानों में आकर कुछ कह जाएंगी 
जब परिंदे खामोश होकर 
हमारी बातें सुनने की कोशिश करेंगे 
जब कोसों दूर तलक
हम दोनों के अलावा ना कोई होगा 
और ना ही कोई शोर होगा, 
हां अगर कोई शोर होगा तो बस 
हमारी धड़कनों का 
जो पूरे वातावरण में धक-धक,धक-धक 
की आवाज से गूंज रहा होगा 
तब मैं तुमसे ये बात कहना चाहूंगा कि 
तुम मेरी सुकून ही नहीं 
मेरा ख्वाब ही नहीं, 
मेरी खुशी ही नहीं 
बल्कि तुम मेरी जिंदगी हो 
तुम मेरे लिए पूरी दुनिया हो 
और यदि मेरे जीवन में तुम नहीं हो तो 
इस जीवन का महत्व भी 
उतना ही होगा जितना कि
आत्मा के चले जाने के बाद 
एक मृत देह का होता है


इंदर भोले नाथ
बागी बलिया उत्तर प्रदेश