कम्बख़्त ये तन्हाई भी न
कुछ इस क़दर हमें अपना बना बैठी है, के
इसका बसेरा मुझमे नहीं, हम
अपना आशियाना ही वीरानो में बना बैठे हैं…
…इंदर भोले नाथ…
http://merealfaazinder.blogspot.in/
कुछ इस क़दर हमें अपना बना बैठी है, के
इसका बसेरा मुझमे नहीं, हम
अपना आशियाना ही वीरानो में बना बैठे हैं…
http://merealfaazinder.blogspot.in/
No comments:
Post a Comment