Saturday, September 19, 2015

ज़रूरी तो नहीं दर्द-ए-शायरी,
लिखने वाला दिल,मोहब्बत मे ही टूटा हो...
दर्द और भी बेशुमार हैं,इस जमाने मे,
जो काफ़ी हैं,दर्द-ए-अल्फ़ाज़ बनाने मे...



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