Saturday, August 8, 2015

"काली और स्याह  रात" 


वही काली और स्याह सी रात,
हमे फिर चिढ़ाने आई है..!
हूँ कितना तन्हा और अकेला मैं,
ये एहसास दिलाने आई है...!!
हर शाम टूट के मैं,
हर रात बिखर जाता हूँ...!
सुबह दिन के उजालों मे,
कहीं गुमनाम सा हो जाता हूँ...!!
बस यही रिश्ता है गम से मेरा,
हर रोज निभाए जाता हूँ...!!

#मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर

Acct- (IBN)

          काश इस शाम कुछ अजीब हो जाए...!
          चन्द लम्हें खुशी के नसीब हो जाए...!!
           हमे ख्वाहिश नही सदियों की.............!
        दो पल ही सही, वो करीब हो जाए...!!

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ये फ़िज़ा उनके हुस्न की बयाँ दे रही है..!
ये हवा उनके होने की गवाह दे रही है...!!
              सदियों से प्यासी आँखों की इलतज़ा कह रही है...!
  मेरी वफ़ा उनके आने की सदा दे रही है...!!

Acct- (IBN)


"बस नही तो वो "ज़िंदगी"


वही छत वही बिस्तर..! 
वही अपने सारे हैं......!!
चाँद भी वही तारे भी वही..!
वही आसमाँ के नज़ारे हैं...!!
बस नही तो वो "ज़िंदगी"..!
जो "बचपन" मे जिया करते थे...!!
वही सडकें वही गलियाँ..!
वही मकान सारे हैं.......!!
खेत वही खलिहान वही..!
बागीचों के वही नज़ारे हैं...!!
बस नही तो वो "ज़िंदगी"..!
जो "बचपन" मे जिया करते थे...!!

#मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर
Acct- (IBN)

"सब कुछ बदल सा गया है."


इस क़दर उदासी इन फ़िज़ाओं मे पहले तो न थी...
इस क़दर बेरूख़ी इन हवाओं मे पहले तो न थी...
ये शाम जिसके आने से कभी दिल खिल उठा था...
इस क़दर खामोश ये पहले तो न थी.....
ये रात जिसका हर लम्हा कभी अपना सा लगा था..
इस क़दर अंजान ये पहले तो न थी....
इक तुम क्या गये ज़िंदगी से "इंदर"...
सब कुछ............................... बदल सा गया है......


‪#‎मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर‬

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"कभी पहेलू मे आओ तुम"


कभी पहेलू मे आओ तुम
मिलके तुम से बहुत सारी बातें करनी है...
कुछ अपनी कहनी है, कुछ तुम्हारी सुननी है...
मिलके तुम से बहुत सारी बातें करनी है...
फिर बातों-बातों मे यूँ ही रूठ जाना तुम...
फिर मैं तुम्हे प्यार से मनाया करूँगा....
रूठने-मनाने का सिलसिला यूँही दोहराते रहनी है...
मिलके तुम से बहुत सारी बातें करनी है...
कितने ख्वाब सुनहरे आँखों मे हमने सजाई है....
इंतेज़ार मे हमने राहों मे तेरी पलकें बिछाई है.....
कर के दीदार तुम्हारी, आँखों की प्यास बुझानी है....
मिलके तुम से बहुत सारी बातें  करनी है...
कभी तो तुम आओगे "इंदर" सदियों से ये आस लगाई है...
ना तुम कभी आए, ना ही तुम्हारी कोई सदा आई है....
इंतेज़ार का ये सिलसिला यूँही बरकरार रखनी है......
कभी पहेलू मे आओ तुम
मिलके तुम से बहुत सारी बातें करनी है...

०२/०६/२०१५ -मेरे अल्फ़ाज़ "इंदर"

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इन आँखों मे भी सपने हैं...!
     इस दिल मे भी कुछ अरमां हैं..!!
                                बस गर्दिशों मे टूटे तारों जैसी इनकी भी कहानी है..!!
        वरना नस्लें तो इनकी भी इंसानी..!!

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