"काली और स्याह रात"
वही काली और स्याह सी रात,
हमे फिर चिढ़ाने आई है..!
हूँ कितना तन्हा और अकेला मैं,
ये एहसास दिलाने आई है...!!
हर शाम टूट के मैं,
हर रात बिखर जाता हूँ...!
सुबह दिन के उजालों मे,
कहीं गुमनाम सा हो जाता हूँ...!!
बस यही रिश्ता है गम से मेरा,
हर रोज निभाए जाता हूँ...!!
#मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर
Acct- (IBN)