इंदर भोले नाथ....... आधुनिक हिंदी साहित्य से परिचय और उसकी प्रवृत्तियों की पहचान की एक विनम्र कोशिश : भारत
Friday, August 7, 2015
"मेरी अधूरी तमन्नाएँ"
मेरी अधूरी तमन्नाएँ आज भी तेरे...
आने की उम्मीद किए बैठी है....
धुंधली सी चिराग लिये सुनी आँखे...
राहों मे आज भी इंतेज़ार किए बैठी है....
तेरा ज़िक्र किए हो ना जिस दिन...
वो दिन अभी गुजरा नहीं....
बरसते हैं आँखों से आसू निस दिन...
लेकिन ख्वाब तेरा उतरा नहीं....
मेरी अधूरी तमन्नाएँ........................!!
Acct- (IBN)
"ज़रा टूटा हुआ"
ज़रा टूटा हुआ है मगर बिखरा नहीं है ये....
वफ़ा निभाने का हुनर इस दिल को अब भी आता है...
तूँ भूल जाए हमे ये मुमकिन है लेकिन.......
हर शाम मेरे लब पे तेरा ज़िक्र अब भी आता है...
हज़ारों फूल सजे होंगे महफ़िल मे तेरे लेकिन...
मेरे किताबों मे सूखे उस गुलाब से खुश्बू अब भी आता है...
न गुज़रेगी कभी तूँ इस रस्ते से लेकिन........
करना उम्मीद तेरे आने का हमे अब भी आता है...
ज़रा टूटा हुआ है मगर बिखरा नहीं है ये....
वफ़ा निभाने का हुनर इस दिल को अब भी आता है...
Acct- (IBN)
२७/०९/२०१० @इंदर@मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर
ज़रा टूटा हुआ है मगर बिखरा नहीं है ये....
वफ़ा निभाने का हुनर इस दिल को अब भी आता है...
तूँ भूल जाए हमे ये मुमकिन है लेकिन.......
हर शाम मेरे लब पे तेरा ज़िक्र अब भी आता है...
हज़ारों फूल सजे होंगे महफ़िल मे तेरे लेकिन...
मेरे किताबों मे सूखे उस गुलाब से खुश्बू अब भी आता है...
न गुज़रेगी कभी तूँ इस रस्ते से लेकिन........
करना उम्मीद तेरे आने का हमे अब भी आता है...
ज़रा टूटा हुआ है मगर बिखरा नहीं है ये....
वफ़ा निभाने का हुनर इस दिल को अब भी आता है...
Acct- (IBN)
२७/०९/२०१० @इंदर@मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर
"चिलमन"
छुपाए चिलमन से चेहरे, हमें इशारों से बुलाती है...
कुछ दिनों से एक लड़की, मेरे ख्वाबों मे आती है...
न कहती है वो मुझसे कुछ, न मेरी ही सुनती है...
रह दूर खड़ी वो बस..........इशारा ही करती है...
है वो कौन, है कैसी, कभी न जान पाया मैं...
जो भी है वो "इंदर", अब हर वक़्त याद आती है...
छुपाए चिलमन से चेहरे, हमें इशारों से बुलाती है...
कुछ दिनों से एक लड़की, मेरे ख्वाबों मे आती है...
Acct- (IBN)
"ऐ-काश"
ऐ-काश के ऐसा हो जाता...!
तेरे लबों पे बस मेरा नाम होता....!!
तेरी सुबह मैं,तेरी रातें मैं...!
और मैं ही तेरा शाम होता...!!
तूँ भी रहती बेचैन सी यूँ...!
जिस क़दर बेताब मैं रहता हूँ....!!
रहता इंतेज़ार बस मेरा ही...!
तेरी सुनी आँखों मे....!!
इसके सिवा मेरे "इंदर" तुझे...!
और न कोई काम होता....!!
ऐ-काश के ऐसा हो जाता...!
तेरे लबों पे बस मेरा नाम होता....!!
Acct- (IBN)
"नयी आगाज़"
उठ सम्भल कर खुद को बुलंद...
कल की नयी आगाज़ है तूँ...
जो सागर का सीना चिर दे..
जो आकाश मे गूँजे बरसों तलक....
कल की वो बुलंद, नयी आवाज़ है तूँ...
उठ सम्भल कर खुद को बुलंद...
कल की नयी आगाज़ है तूँ...
ना हार खुद से इतनी जल्दी..
हौसलों को कर बुलंद अपने...
हो गरूर हर नौजवां को तुझपे...
कल की नयी वो नाज़ है तूँ..
उठ सम्भल कर खुद को बुलंद...
कल की नयी आगाज़ है तूँ...
भर दे सब मे जो जोश-ए-जुनूँ...
हर दिल का अंधियारा दूर करे...
खुद मिट के भी "इंदर" जो औरों को उजाले दे...
कल की नयी वो आफ़ताब है तूँ....
उठ सम्भल कर खुद को बुलंद...
कल की नयी आगाज़ है तूँ...
Acct- इंदर भोले नाथ.......(IBN)
०८/०६/२०१५ @ इंदर @ मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर
उठ सम्भल कर खुद को बुलंद...
कल की नयी आगाज़ है तूँ...
जो सागर का सीना चिर दे..
जो आकाश मे गूँजे बरसों तलक....
कल की वो बुलंद, नयी आवाज़ है तूँ...
उठ सम्भल कर खुद को बुलंद...
कल की नयी आगाज़ है तूँ...
ना हार खुद से इतनी जल्दी..
हौसलों को कर बुलंद अपने...
हो गरूर हर नौजवां को तुझपे...
कल की नयी वो नाज़ है तूँ..
उठ सम्भल कर खुद को बुलंद...
कल की नयी आगाज़ है तूँ...
भर दे सब मे जो जोश-ए-जुनूँ...
हर दिल का अंधियारा दूर करे...
खुद मिट के भी "इंदर" जो औरों को उजाले दे...
कल की नयी वो आफ़ताब है तूँ....
उठ सम्भल कर खुद को बुलंद...
कल की नयी आगाज़ है तूँ...
Acct- इंदर भोले नाथ.......(IBN)
०८/०६/२०१५ @ इंदर @ मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर
"जैसे कल की बात है"
आज दिल बहुत उदास
है दोस्तों, किसी महान
इंसान की जिसे हम "बाबूजी"
कहते थें..उनकी कमी
बहुत महेसुस हो रही
है आज........
गुजर चुके हैं..........
बरसों.........फिर भी न जाने क्यू..
लगा रहा है ऐसा.....
जैसे कल ही की बात हो.........
जैसे कल ही की तो
बात है जब "बाबूजी"
हमारी उंगली पकड़
के हमे चलना सिखाया था..
जैसे कल ही सुबह हम
स्कूल जाने से रो रहे थें...
जैसे कल शाम ही तो हम
मेले मे किसी खिलौने के
लिए "बाबूजी" से
ज़िद्द कर रहे थे..
जैसे कल ही दोपहर
क्लास मे टिफ़िंन
के वक़्त..........
दोस्तों संग मिल
बाँट के खा रहे थे..
जैसे कल ही किसी
नये कमीज़ खरीदे
जाने से बहुत खुश
हो रहे थें हम...
जैसे कल ही दोस्तों
को वो नयी कमीज़
दिखा के चिढ़ा रहे थें हम...
जैसे कल ही की तो
वो बात है जब दीदी
के बटुए से पैसे
चुराकर दोस्तों सॅंग
बाज़ार मे चांट खाई थी...
जैसे कल ही की तो
बात है वो शाम
को घर आते ही
दीदी के हाथों खूब
पिटाई हुई थी हमारी..
न जाने कितनी वो
बातें जैसे कल की
लग रही हो......
देखते-देखते वक़्त
कब गुजर गया....
पता ही नहीं चला
"इंदर" कब हम
बड़े हो गये.......
जैसे कल ही की
तो बात हो.....
जब "बाबूजी" के
कंधे पे बैठ के
तमाशे देख रहे थें...
जैसे कल ही की
तो बात है जब
बिना बताए किसी
को घर से बहुत दूर
फिल्म देखने चले
गये थें तब "बाबूजी"
के हाथों अरहर के
मोटे डंडे से बहुत
पिटाई हुई थी हमारी...
बहुत याद आ रहे
हो आज "बाबूजी"
आप, आप की कमी
हमेशा हमे महेसुस
होती रहेगी..........
वो कमी कभी भी
नही पूरी हो सकती....
बहुत याद आ रहे हो
आप आज "बाबूजी".........................................................
@Acct-इंदर भोले नाथ सिंह...(IBN)
#०६/०५/२०१५ बुधवार शाम- ०६:५५ @ इंदर @ मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर
आज दिल बहुत उदास
है दोस्तों, किसी महान
इंसान की जिसे हम "बाबूजी"
कहते थें..उनकी कमी
बहुत महेसुस हो रही
है आज........
गुजर चुके हैं..........
बरसों.........फिर भी न जाने क्यू..
लगा रहा है ऐसा.....
जैसे कल ही की बात हो.........
जैसे कल ही की तो
बात है जब "बाबूजी"
हमारी उंगली पकड़
के हमे चलना सिखाया था..
जैसे कल ही सुबह हम
स्कूल जाने से रो रहे थें...
जैसे कल शाम ही तो हम
मेले मे किसी खिलौने के
लिए "बाबूजी" से
ज़िद्द कर रहे थे..
जैसे कल ही दोपहर
क्लास मे टिफ़िंन
के वक़्त..........
दोस्तों संग मिल
बाँट के खा रहे थे..
जैसे कल ही किसी
नये कमीज़ खरीदे
जाने से बहुत खुश
हो रहे थें हम...
जैसे कल ही दोस्तों
को वो नयी कमीज़
दिखा के चिढ़ा रहे थें हम...
जैसे कल ही की तो
वो बात है जब दीदी
के बटुए से पैसे
चुराकर दोस्तों सॅंग
बाज़ार मे चांट खाई थी...
जैसे कल ही की तो
बात है वो शाम
को घर आते ही
दीदी के हाथों खूब
पिटाई हुई थी हमारी..
न जाने कितनी वो
बातें जैसे कल की
लग रही हो......
देखते-देखते वक़्त
कब गुजर गया....
पता ही नहीं चला
"इंदर" कब हम
बड़े हो गये.......
जैसे कल ही की
तो बात हो.....
जब "बाबूजी" के
कंधे पे बैठ के
तमाशे देख रहे थें...
जैसे कल ही की
तो बात है जब
बिना बताए किसी
को घर से बहुत दूर
फिल्म देखने चले
गये थें तब "बाबूजी"
के हाथों अरहर के
मोटे डंडे से बहुत
पिटाई हुई थी हमारी...
बहुत याद आ रहे
हो आज "बाबूजी"
आप, आप की कमी
हमेशा हमे महेसुस
होती रहेगी..........
वो कमी कभी भी
नही पूरी हो सकती....
बहुत याद आ रहे हो
आप आज "बाबूजी".........................................................
@Acct-इंदर भोले नाथ सिंह...(IBN)
#०६/०५/२०१५ बुधवार शाम- ०६:५५ @ इंदर @ मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर
"मेरे लाल"
फूलों पे बैठे
भौंरे गुनगुनाने
लगे हैं..
तितलियों के
पंख भी अब
लहराने लगे हैं..
देखो वक़्त
कितना निकल
चुका है..
उठो मेरे लाल
दिन निकल
चुका है..
देखो ठंडी हवा
भी खिड़कियों
से आने लगी है....
गुदगुदा के वो
भी तुम्हे उठाने
लगी है...
देखो तो सब
कुछ कितना
बदल चुका है..
उठो मेरे लाल
दिन निकल
चुका है..
हर जगह
कितनी रौनक
है आ गई.....
आसमान से
ज़मीं तक बहारें..
है छा गई......
एक तुम क्या
सोए हो घर
सुना सा लग
रहा है........
उठो माँ कह के
अब तो मुझे
पुकारो,ये शब्द
सुनने को
दिल मचल
चुका है...
उठो मेरे लाल
दिन निकल
चुका है..
Acct- इंदर भोले नाथ सिंह.....(IBN)
१५/०४/२००७ @ इंदर @ मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर
"लल्ला"
उस दिन इंटरव्यू के लिए जाना था मुझे, किसी कंपनी से कॉल आया था ! जल्दी से तैयार होकर मैं स्टेशन पहुँचा, अभी १५-२० मिनट का समय था, लोकल ट्रेन के आने मे....
टिकेट लेके मैं वेटिंग रूम मे बैठकर ट्रेन का इंतेज़ार करने लगा ! तभी एक मासूम सा बच्चा जिसकी उम्र यही कोई ६-७ साल की होगी,फटा सा कमीज़ पहने वेटिंग रूम मे आकर लोगों के आगे चन्द सिक्कों के लिए हाथ फैला रहा लगा ! या यूँ कहे के भीख माँग रहा था,
कोई उसपे ध्यान नही देता तो कोई दुत्कार देता या गलियाँ दे कर भगा देता था ! फिर भी वो बच्चा हर अगले के सामने हाथ फैला देता था ! किसी भले इंसान ने २-४ रुपये दिए भी थे....क्योंकि चन्द सिक्के उसके हाथों मे दिख रहे थे ! यूँ ही माँगते हुए वो मेरे पास आया, और मेरे पैर छू के मुझसे पैसे माँगने लगा ! मैने उसे वो खाना देना चाहा जो खाना मैं घर से लेकर चला था रास्ते मे खाने के लिए ! मैने उसकी तरफ वो खाने का थैला बढ़ा दिया ! उसने मना कर दिया खाना लेने से, और बोला भैया मुझे खाना नहीं चाहिए मुझे पैसे चाहिए,
मैने कहा पैसे से तुम खाना ही खरीद कर खाओगे..नहीं मुझे पैसे की ज़रूरत है ! फिर मैने उसे पर्स से ५ रुपये का नोट निकाल कर दिया.. वो बहुत खुश हुआ ५ रुपये का नोट देखकर, पैसे लेकर बोला भैया ये खाना भी ले लूँ...... मैने खाना भी उसे दे दिया ! खाना लेकर वो जाने लगा, दुबारा मैने उसे अपने पास बुलाया, और उसका नाम पूछा ! बोला माँ मुझे "लल्ला" कह के बुलाती है, मेरा नाम "लल्ला" है ! कहाँ है तुम्हारी माँ और क्या करती हैं.... मैने उससे पूछा........!
वो रोने लगा और रोते हुए बोला मेरी माँ को बुखार है, २ दिनों से सोई हुई है ! वो काम पर भी नहीं जाती है, खाना भी नहीं बनाती, घर मे कुछ खाने को भी नहीं है....मैने कल से कुछ नहीं खाया, बहुत भूख लगी है मुझे...........मैने पूछा तुम्हारे पापा
कहाँ है............वो बड़े मासूम से लहजे मे बोला......पापा तो मर गये, बहुत दिन पहले....माँ कहती है, तब मैं बहुत छोटा था.....उसकी ये बातें सुनके दिल भर सा आया मेरा...
मैने कहा खाना ख़ालो, उसने कहा नहीं...घर ले जाके माँ के साथ खाउँगा ! और इन पैसों से दवा ख़रीदुउँगा, माँ को बुखार है न....इसलिए.................................उस मासूम से बच्चे का अपने माँ के प्रति प्यार देख कर दिल भर गया मेरा.........
दो दिनों से तो ये भी भूखा है, इसने भी दो दिनों से कुछ नहीं खाया, फिर भी खाना अकेला न खाकर माँ के साथ ही खाउँगा कह रहा है ! इतनी सी उमर मे कितनी बड़ी सोच रखता है..धन्य है वो माँ "लल्ला" जिसने तुझे पैदा किया ! मैं अपना इंटरव्यू भूल गया..और उसके साथ मैं उसके घर गया !
एक छोटी सी बस्ती थी, मुश्किल से १० या १२ घर होंगे कुल........उसी बस्ती मे एक छोटा सा कमरा था..कुछ चीज़ें इधर-उधर बिखरी पड़ी थी ! वहीं फर्स पे एक महिला मैले-कुचले एक पुरानी सी साड़ी पहने हुए कमरे के एक कोने मे लेटी हुई थी ! जिनकी उम्र तकरीबन २५-२८ साल की होगी....पर ग़रीबी की थपेड़ों और किस्मत की मार से ५० साल की लग रही थी !
पास जाकर देखा... बहुत तेज बुखार था.....शरीर तप रहा था......
मैं कमरे से बाहर आया और स्टेशन की तरफ चल दिया, स्टेशन के बगल मे एक छोटा सा क्लिनिक था ! वहाँ से डॉक्टर साहब को लेके मैं सीधा "लल्ला" के घर आया, डॉक्टर साहब ने चेक-अप कर के एक इंजेक्सन और कुछ दवा दिए खाने को !
और कहा शाम तक ठीक हो जाएँगी, मैने डाक्टर साहब को पैसे दिए ! डाक्टर साहब के जाने के बाद, मैने "लल्ला" को बोला
"लल्ला" तुम्हारी माँ शाम तक ठीक हो जाएँगी..............कुछ देर तक मैं वहीं रहा उनकी अवस्था कुछ ठीक हुई.....
तो उन्होने बताया के उनके पति का ४ साल पहले देहांत हो गया...... पास के गाव मे बड़े लोग रहते हैं.....उन्ही के यहाँ झाड़ू-पोछा करती हूँ तो कुछ पैसे मिल जाते है !
फिर मैने कहा अच्छा अब मैं चलता हूँ..... मुझे इंटरव्यू के लिए जाने हैं........ ये कुछ पैसे हैं........रख लो आप.........
उसने बहुत सारी दूवाएँ दी मुझे और भगवान से मेरी लंबी उमर के लिए दूवाएँ मांगती रही.....
मैं बाहर आके "लल्ला" को अपने पास बुलाया और बोला "लल्ला" अब न जाना स्टेशन पर तुम्हारी माँ शाम तक ठीक हो जाएँगी ! फिर वो काम पर भी जाएँगी और तुम्हारे लिए खाना भी बनाएँगी....................
फिर मैं स्टेशन की तरफ चल पड़ा, दिल मे एक ही नाम लिए......................................"लल्ला"
Acct- इंदर भोले नाथ सिंह....(IBN)
१७/०५/२०१५ @ इंदर @ #मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर
"वो रिक्शा वाला"
"साहेब मुझे छोड़ दो साहेब"
"साहेब मुझे छोड़ दो साहेब" बार-बार यही फरियाद करता रहा, वो रिक्शा वाला थानेदार "साहेब" से...........
"साहेब मुझे छोड़ दो साहेब" मैं बहुत ही ग़रीब आदमी हूँ "साहेब" माँ-बाप ने जैसे-तैसे क़र्ज़ लेकर मुझे पढ़ाया ! ताकि मुझे कोई अच्छी सी नौकरी मिल जाए, और मैं घर की ज़िम्मेदारी संभाल सकूँ ! पढ़ाई पूरी कर के बहुत से ऑफीस की खाक छानी साहेब पर हर जगह से मुझे निकल दिया गया ! ये कह कर के "हमे अनुभवी लोगों की ज़रूरत है" फ्रेशर की नहीं...... बड़ी मेहनत करके साहब मैने इंटर की परीक्षा फ़र्स्ट डिवीजन से पास किया था........आगे भी पढ़ना चाहता था, पर क्या करें साहेब क़र्ज़ का बोझ ज़्यादा हो गया था ! इसलिए पढ़ाई छोड़ नौकरी की तलाश मे लग गया !
बहुत कोशिस की साहेब पर मुझे कहीं नौकरी नही मिली, हर ऑफीस हर जगह से मायूसी मिली ! पिताजी की तबीयत भी ठीक नही रहती आज-कल, इसलिए नौकरी तलाशनी छोड़, आज ही किसी से किराए पर रिक्शा लेकर चला रहा था साहेब ! मैं तो अपनी साइड था "साहेब" कार वाले "बाबूजी" ही ग़लत साइड से कार लेकर आ रहे थें !
अभी उसने अपनी बात पूरी भी नही की थी की..........."थानेदार साहेब" ने फिर दो थप्पड़ उसके गाल पे जड़ दिया ! साले बोलता है उसकी ग़लती थी, पता है तुझे १९ लाख की गाड़ी थी सिंह साहब की,अभी लिए हुए महीना भी नही हुआ, और तूने स्क्रोच कर दिया ! लाखों का खर्चा आएगा, कौन भरेगा तेरा बाप.........
पर साहब मेरी ग़लती थोड़ी न थी ममम मैं तो..........! चुप साले वरना अभी अंदर डाल दूँगा......पड़ा रहेगा २-४ दिनों तक
चल ५०० रुपया निकाल छोड़ दूँगा तुझे, वरना केस बना के अंदर डाल दूँगा..........
साहेब मैं ५०० रुपया कहाँ से दूँगा "साहेब", सुबह से बस ये २० रुपये ही तो कमाए थें अब तक ! वो भी जिनका रिक्शा है उनको पूरे दिन का किराया २० रुपया देना पड़ेगा ! उपर से कार वाले बाबूजी ने धक्का मार दिया....उससे रिक्शे के आगे वाले पहिए का रिंग टूट गया है साहेब ! हैंडल भी टूट गया है, रिक्शे का परदा भी फट गया है....... "साहेब" १००० रुपया तो उसी मे खर्च हो जाएगा, "साहेब"........मैं ५०० रुपया कहाँ से दूँगा "साहेब"..... "साहेब मुझे छोड़ दो साहेब".......
साले तूँ ऐसे नही मानेगा..... पांडे......जी साहेब......बंद कर दे साले को अंदर जब तक पैसे ना दे छोड़ना नहीं...............
और "थानेदार साहेब" बड़े गर्व से अपना कैप पहन के बाहर चले गये..............!!
Acct- इंदर भोले नाथ सिंह......(IBN)
"मन की बात"
"ज्योत से ज्योत जगाते चलो प्रेम की गंगा बहाते चलो " रमेश के मोबाइल मे लगा रिंग टोन बजा.......
रमेश :- "हेल्लो" कौन
रमेश मैं महेश बोल रहा हूँ..... हाँ भैया, कहिए कैसे है, सब ठीक तो है न सुना है, भाभी की तबीयत खराब है ! हाँ रमेश तबीयत बहुत खराब है, अस्पताल मे भर्ती किए हैं.....वो....
अरे हाँ भैया अगर कोई हो तो बता दीजिएगा.....हम अभीं तो बीजी हूँ, बाद मे बात करता हूँ !
फ़ोन कट कर के रख दिया....अरे कौन था, रे रमेश........अरे उ भैया थें......भाभी की तबीयत......अरे तूँ क्या करेगा जान के चल तूँ पैग बना.........!!
२ महीने बाद जब रमेश घर आया, एक दिन खाना खा रहा था, तभी अचानक द्वार पे कोई आया ! और उसके बड़े भाई को भला बुरा कहने लगा !
अरे महेश २ महीने हो गये, तूने अभी तक मेरा उधार नहीं दिया, कब देगा मेरा पैसा...देख अगर तूने जल्द मेरा पैसा नहीं दिया तो मैं तेरी गाय खोल के ले जाउँगा !
अंदर खाना खा रहा रमेश अपनी पत्नी से.... अरे कौन चिल्ला रहा है, बाहर.....पत्नी- लाला है बड़े भाई साहब को भला बुरा कह रहा है ! रमेश- क्यों क्या हुआ..........अरे भाई साहब ने क़र्ज़ लिया था उससे, जब दीदी की तबीयत खराब थी ! वही माँगने आया होगा......
रमेश खाना छोड़ बाहर आकर, भैया आपने लाला से क़र्ज़ लिया था, जब भाभी की तबीयत खराब थी ! मैने आप को बोला था न के अगर पैसे की ज़रूरत हो तो मुझसे कहिएगा...........
महेश चुप-चाप खड़ा उसकी बातें सुन रहा था......एक शब्द नहीं बोल रहा था !
पास मे ही खड़ी महेश की पत्नी भी रमेश की बातें सुन रही थी, महेश के कुछ न बोलने पर..... वो बोली...
रमेश तुम्हे तो पता ही है, हमारी स्थिति.... खेतों मे इस साल फसल भी अच्छा नहीं हुआ ! तुम्हारे भैया को कोई काम भी नही मिलता, उनकी भी तबीयत आज-कल खराब ही रहती है ! तुम और तुम्हारी पत्नी हमारी परिस्थिति को भली-भाति जानते हो उस दिन तुम्हारे भैया ने पैसे के लिए ही तो तुम्हारे पास फ़ोन किया था ! जब उन्हे पता चला के मेरी तबीयत खराब है इसका तुम्हे पहले से पता था ! फिर भी तुमने फ़ोन करके मेरा हाल तक नहीं पूछा...........और तो और जब उन्होने फ़ोन किया तो तुमने कहा के कोई बात हो तो मुझे बता दीजिएगा......सब जानते हुए भी के हम किस स्थिति से गुजर रहे हैं, फिर तुम कह रहे हो के कोई बात हो तो बता दीजिएगा....ये कह कर तुमने फ़ोन काट दिया....! फिर दुबारा पूछे भी नही के भैया पैसे का इंतेजाम हुआ भी या नही !
रमेश जब तुम्हारे भैया के साथ मेरी शादी हुई थी, तब तुम ६ साल के थे ! शादी के दो साल बाद ही सासू माँ गुजर गई !
मैं आज भी तुम्हे देवर नहीं, अपना बेटा समझती हूँ ! जब तुम छोटे थे, तुम्हारे भैया अनपढ़ होते हुए भी मेहनत मज़दूरी करके तुम्हे पढ़ाया ! खुद पुराने कपड़े पहनते रहे पर तुम्हारे लिए नये सिलवाते थें ! तब तुमने अपने भैया से कहा था के भैया मुझे पढ़ना है, भैया मुझे नये कपड़े खरीद दो नही न.....क्योकि भैया तुम्हारी मन की बात समझते थें.........और अपना फ़र्ज़ निभाना चाहते थें !
और उस दिन रमेश.............जब भैया ने फ़ोन किया तो तुम उनकी मन की बात नहीं समझ पाए........
Acct - इंदर भोले नाथ सिंह.....(IBN)
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