Sunday, February 10, 2019

गज़ल

वो सख्श मेरे सामने था खड़ा
मैं बस उसे देखता  ही रहा

सोचा उस से दो बातें करलें
पल दो पल की मुलाकातें कर लें

न जाने क्यूँ वो अपना सा लगा
वो सच था पर सपना सा लगा

इक कशिश थी उसकी आँखों में
इक बेचैनी थी उसकी  सांसों में

खुद को पाया मैंने उस में
न जाने क्यों वो आइना सा लगा

पहले भी मिला था शायद उससे
तब बड़ा ही दिल खुश लगता था

मगर आज कुछ खोया सा लगा
रूह तलक रोया सा लगा

नहीं था वो जुदा हमसे "इंदर"
वो शख्स मेरा साया सा लगा

....इंदर भोले नाथ