Thursday, July 22, 2021

दर्पण

दर्पण देख शरमाने लगे हो,शायद
तुम पे निखार अब आने लगा है

घंटों तक पास बैठे रहते हो उसके
आईना भी तुम से बतियाने लगा है

बारिस मे छत पे नहा भी रहे हो
सावन, तुम्हें रास आने लगा है

मिलना भी है और खामोश रह कर
नज़र अब मोहब्बत जताने लगा है

आँखों मे काजल और पैरों मे पायल
समीज़ कंधे पे दुपट्टा सजाने लगा है


हाय  ये यौवन तुम पर क्या  आया
शहर  है के महफ़िल सजाने ल्गा है


 ~ इंदर भोले नाथ