इंदर भोले नाथ....... आधुनिक हिंदी साहित्य से परिचय और उसकी प्रवृत्तियों की पहचान की एक विनम्र कोशिश : भारत
Sunday, August 9, 2015
"तेरे लबों पे बस मेरा"
ऐ-काश के ऐसा हो जाता...!
तेरे लबों पे बस मेरा नाम होता....!!
तेरी सुबह मैं,तेरी रातें मैं...!
और मैं ही तेरा शाम होता...!!
तूँ भी रहती बेचैन सी यूँ...!
जिस क़दर बेताब मैं रहता हूँ....!!
रहता इंतेज़ार बस मेरा ही...!
तेरी सुनी आँखों मे....!!
इसके सिवा मेरे "इंदर" तुझे...!
और न कोई काम होता....!!
ऐ-काश के ऐसा हो जाता...!
तेरे लबों पे बस मेरा नाम होता....!!
#मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर
Acct- (IBN)
"काश आज की रात"
काश आज की रात तुम हमारे पास होते...!
कुछ लम्हे ही सही तुम हमारे साथ होते....!!
खो जाते एक-दूसरे मे कुछ इस क़दर...!
जैसे एक जिस्म एक जान होते....!!
ना खबर होती जमाने की...!
ना परवाह होता रिवाजों का....!!
कुछ इस क़दर से "इंदर"...!
मदहोश हम आज होते....!!
काश आज की रात तुम हमारे पास होते...!
कुछ लम्हे ही सही तुम हमारे साथ होते....!!
१९/०७/२०१५ @ इंदर @मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर
Acct- (IBN)
"में वो अल्फ़ाज़ हूँ"
हमसे हमारी पहचान बस इतना ही पाओगे तुम...
मैं वो अल्फ़ाज़ हूँ जो हर वक़्त गुनगुनाओगे तुम....
बस जाएँगे तुम्हारी रूह मे हम कुछ इस क़दर...
हो जाएगी तुम्हे हमारी लत्त कुछ इस क़दर...
इक पल भी हमारे बिन ना रह पाओगे तुम..
मैं वो अल्फ़ाज़ हूँ जो हर वक़्त गुनगुनाओगे तुम....
तड़प उठोगे जब हम नज़रों से ओझल हो जायेंगे...
कुछ इस क़दर "इंदर" हम तुम्हारी चाहत हो जायेंगे....
हर जगह बस हमे ही पाओगे तुम.....
मैं वो अल्फ़ाज़ हूँ जो हर वक़्त गुनगुनाओगे तुम....
०५/०७/२०१५ @इंदर@मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर
Acct- (IBN)
"अब भी आता है"
ज़रा टूटा हुआ है मगर बिखरा नहीं है ये....
वफ़ा निभाने का हुनर इस दिल को अब भी आता है...
तूँ भूल जाए हमे ये मुमकिन है लेकिन.......
हर शाम मेरे लब पे तेरा ज़िक्र अब भी आता है...
हज़ारों फूल सजे होंगे महफ़िल मे तेरे लेकिन...
मेरे किताबों मे सूखे उस गुलाब से खुश्बू अब भी आता है...
न गुज़रेगी कभी तूँ इस रस्ते से लेकिन........
करना उम्मीद तेरे आने का हमे अब भी आता है...
ज़रा टूटा हुआ है मगर बिखरा नहीं है ये....
वफ़ा निभाने का हुनर इस दिल को अब भी आता है...
२७/०९/२०१० @इंदर@मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर
Acct- (IBN)
"मेरी पहचान याद आयेगी"
कभी तन्हा होगे तब तुम्हे,
हमारी याद आयेगी...!
दर्द मे सिमटी रात,
खामोशियों मे डूबी शाम आयेगी...!!
मेरे न होने का एहसास,
तुम्हे इस क़दर सतायेगी...!
धड़कन की रफ़्तार तेज,
साँसे मचल सी जायेगी...!!
हर शाम टूट के तुम भी,
हर रात बिखर जाओगे..
फिर ख्यालों की अपनी,
एक नई दुनिया बसाओगे...
जब हो जाओगे खुद से,
यूँ गुमनाम तन्हाई मे...!
तब तुम्हे "इंदर",
मेरी पहचान याद आयेगी......!!
१५/०६/२०१५ @ इंदर @ मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर
Acct- (IBN)
"अपना के देखो"
सच्चाई की राह जन्नत है "जनाब",
बस इसे अपना के तो देखो...
लग जाते हैं गले दुश्मन भी कभी,
बस प्यार से गले लगा के तो देखो...
पिघल जाते हैं पत्थर भी "जनाब",
कभी अंगारों से आँख मिला के तो देखो...
संवर जाते हैं बिगड़े मुक़द्दर भी यहाँ,
कभी सिकंदर सा हौंसला ला के तो देखो..
गुमान करते हो जिन अपनों पे तुम "इंदर",
वो भी मुकर जाएँगे,
सच्चाई की राह कभी अपना के तो देखो.......
#मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर
Acct- (IBN)
"कभी ख्वाब रखते थें"
कभी हम भी ख्वाब रखते थें,
आसमाँ मे उड़ जाने को..
कभी हम भी ख्वाब रखते थें,
सागर मे नाव चलाने को..
कभी हम भी ख्वाब रखते थें,
इक नई जहाँ बसाने को...
कभी हम भी ख्वाब रखते थें,
ज़मीं पे चाँद लाने को....
कभी हम भी ख्वाब रखते थें,
पापा सा बड़ा हो जाने को..
अब हम भी ख्वाब रखते हैं..."इंदर"...
उस ख्वाब-नुमा बचपन मे लौट जाने को....
#मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर
Acct- (IBN)
"तेरे प्यार से"
बारिश की सर्द रात ये,
तुम्हारी याद दिलाती है....
लौट भी आओ "जान" मेरी,
तन्हाई तुम्हे बुलाती है...
छम-छम करती ये बूंदे,
तेरे पायल का राग सुनाती है..
झोंके ये सर्द हवा के,
दिल मे आग लगाती है...
लौट भी आओ "जान" मेरी,
तन्हाई तुम्हे बुलाती है..
घुट-घुट के न मर जायें,
कहीं हम तेरी याद मे...
कहीं याद ही न रह जायें बनके,
हम तेरी याद मे..
हर दर्द रूह को छूती है,
बस तेरी याद मे.......
घुट-घुट के न मर जायें,
कहीं हम तेरी याद मे...
जब ज़िक्र करूँ मैं कोई भी,
लब पे तेरी बात आती है..
लौट भी आओ "जान" मेरी,
तन्हाई तुम्हे बुलाती है...
अब हार गया "इंदर" ये दिल,
तन्हाइयों की मार से....
कहीं नफ़रत न कर बैठूं मैं,
तेरे प्यार से.....
#मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर
Acct- (IBN)
"ऐ-वक़्त"
जब ज़िंदगी दिल से जिया करते थे..!
जब लबों पे बस हसी लिए फिरते थे...!!
"ऐ-वक़्त" वो चन्द हसीं लम्हात हमे लौटा दे..!!!
जब न थी खबर ज़माने की,
बस खुद मे ही खोए रहते थे..!
जब थक के सारा दिन,
रात को मस्त सोए रहते थे...!!
"ऐ-वक़्त" वो सुकून के चन्द रात हमे लौटा दे...!!!
जहाँ न दर्द-ए-गम की जगह थी कोई,
जहाँ न ज़ख़्मों का कोई ठिकाना था..!
जब झगड़ते थे उसी पल,
फिर अगले पल मिल जाना था...!!
"ऐ-वक़्त" झगड़ने का फिर से वो जज़्बात हमे लौटा दे...!!!
"ऐ-वक़्त" वो "बचपन" हमे लौटा दे..!!!
@मेरे_अल्फ़ाज़_इंदर
Acct- (IBN)
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