"कभी पहेलू मे आओ तुम"
कभी पहेलू मे आओ तुम
मिलके तुम से बहुत सारी बातें करनी है...
कुछ अपनी कहनी है, कुछ तुम्हारी सुननी है...
मिलके तुम से बहुत सारी बातें करनी है...
फिर बातों-बातों मे यूँ ही रूठ जाना तुम...
फिर मैं तुम्हे प्यार से मनाया करूँगा....
रूठने-मनाने का सिलसिला यूँही दोहराते रहनी है...
मिलके तुम से बहुत सारी बातें करनी है...
कितने ख्वाब सुनहरे आँखों मे हमने सजाई है....
इंतेज़ार मे हमने राहों मे तेरी पलकें बिछाई है.....
कर के दीदार तुम्हारी, आँखों की प्यास बुझानी है....
मिलके तुम से बहुत सारी बातें करनी है...
कभी तो तुम आओगे "इंदर" सदियों से ये आस लगाई है...
ना तुम कभी आए, ना ही तुम्हारी कोई सदा आई है....
इंतेज़ार का ये सिलसिला यूँही बरकरार रखनी है......
कभी पहेलू मे आओ तुम
मिलके तुम से बहुत सारी बातें करनी है...
०२/०६/२०१५ -मेरे अल्फ़ाज़ "इंदर"
Acct- (IBN)
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