Monday, July 8, 2019

ग़ज़ल (इश्क़ में रुलाया गया हूँ मैं...

फन्ना हुई कस्ती मेरी,मेरे आसूओं मे डूबकर,
कुछ इस क़दर इश्क़ में रुलाया गया हूँ मैं...

उड़ने लगा हूँ आज-कल फिजाओं मे राख-सा,
कुछ इस क़दर गम-ए-इश्क़ में जलाया गया हूँ मैं...

कब रहा है शौक़ मुझे,मयकदे और ज़ाम का,
मैं पीता नहीं हूँ "इंदर", पिलाया गया हूँ मैं...

न मैं रहा दिल में तेरे न मेरे यादों का साया है,
कुछ इस क़दर ज़ेहन से तेरे भुलाया गया हूँ मैं

मैं तोड़ चला था रिश्ता कब का गमों के बज़्म से, 
आज फ़रमाइश पे दिलजलों के बुलाया गया हूँ मैं..... 



.......इंदर भोले नाथ 


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