'' गुजर जायेंगे बनकर हवा तेरे आंगन से कभी
लीपट जायेंगे बनकर हवा तेरे दामन से कभी,
बसा रखा है अपनी आंखों में जो सागर मैने
बरस जायेंगे बनकर घटा तेरे सावन में कभी,
इंदर भोले नाथ....... आधुनिक हिंदी साहित्य से परिचय और उसकी प्रवृत्तियों की पहचान की एक विनम्र कोशिश : भारत
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