इंदर भोले नाथ....... आधुनिक हिंदी साहित्य से परिचय और उसकी प्रवृत्तियों की पहचान की एक विनम्र कोशिश : भारत
Wednesday, August 7, 2019
हर मौसम चली आती है.....
यादों का क्या है, बिन बुलाए मेहमान होती है
खुशी हो या गम हो हर मौसम चली आती है
खुशी हो या गम हो हर मौसम चली आती है
Saturday, August 3, 2019
वो जून कि गर्मी, वो पीपल का साया
वो जून कि गर्मी, वो पीपल का साया
वो यारों की टोली, वो रिश्तों का माया
वो मिट्टी का घरौंदा, वो खपरैलों का छत
लिए सोंधी सी खुश्बू, वो काग़ज़ का ख़त
वो ममता की लोरी, वो ख्वाबों की चोरी
वो सांझ की बेला, वो चंदा चकोरी
कोई मुझसे पूछे, क्या मैने है खोया
इक मासूम बच्चा, वो बचपन गँवाया,,
कहाँ मिलता वो गुजरा पल,ये मुझको बता दो तुम
मैं सब कुछ रख दूं गिरवी, वो वक़्त दिला दो तुम
बहुत रोएँ जवां होके,तन्हाई मे छुप-छुप के,फिर
जियें खुलके हर इक लम्हा,बचपन से मिला दो तुम
अहम की ज़िद मे हमने ब्यर्थ जीवन गँवाया है
हमें अपनों ने खोया है,हमने अपनों को भुलाया है
किमत अमुल्य होती है, इक मुस्कान का, लेकिन
ये न उनको समझ आई, न हमने समझ पाया है
ज़िम्मेदारियों के भंवर मे खुद को फसा रखा है
कई दर्द सिने मे हमने, अपने छुपा रखा है
जो कभी देखा था मैने, फ़ुर्सत के आलम मे
वो ख्वाब आँखों मे हमने अब तक बसा रखा है
वफ़ा की चाह मे कभी, गुजर गया सभी हद से
बहुत लाचार होता हूँ, अब जो मिलता हूँ,मैं खुद से
मिले हैं दर्द बेशुमार, वफ़ा की राह लेकिन
कोई शिकायत नहीं मेरी है, ऐ-ज़िंदगी तुम से
खुद ही फँसे भंवर मे, तुम्हे हम क्या पनाह देंगे
साहिल पे आ लगें जब, तुम्हारे काम आ सकेंगे
थोड़ा इंतेज़ार कर लो, गर मुझ पे ऐतवार हो
साथ चल ना सकें तो, तुम्हे मंज़िल दिखा देंगे
अब इल्तिज़ा यही है, के कोई इक़्तिज़ा न हो
इंतेज़ार-ए-यार का फिर,कोई सिलसिला न हो
गुजर रहे हैं सम्भल के,रह-ए-उल्फ़त की गली से अब
इश्क़ के सफ़र में फिर तुम-सा कोई बेवफा न हो
लफ्ज़ उर्दू हैं मेरे लेकिन, रगों मे हिन्दी समाई है,
हूँ वंशज राम का लेकिन, रहीम मेरा ही भाई है,
रंग एक सा दिखा है, सभी के, लहू का लेकिन
कोई कहता मैं सिख हूँ कोई कहता ईसाई है...
सदाये उनकी भी आती है,जो दुनिया से चले जाते हैं,
कभी यादों के ज़रिये, तो कभी ख्वाबों के ज़रिये,
कभी जो लड़खड़ाएँ हम,वो हौसला बढ़ाते हैं
कभी यादों के ज़रिये, तो कभी ख्वाबों के ज़रिये,
ना तुम रहे हम मे, ना अपने आप सा हम हैं
ये आखरी मुलाकात का गम है,तन्हा रात का गम है
रो लेते हैं जी भर के बारिश मे आज कल
ये बरसात का मौसम है किसी की याद का मौसम है
ढोंग रिवाजों का फैला,झूठी रस्मों का बोलबाला है
झूठ के माथे चंदन है, हुआ सच का मुँह काला है
करोड़ों का घोटाला कर भी,ग़रीबों का छीना नीवाला है
माथे पे चंदन घिस घिस के, चोर बना रखवाला है
लुटेरे हो तुम पीढ़ी दर, तुम्हे बस लूटना ही आता है
मनाना तुम कहाँ सीखे, तुम्हे बस रूठना ही आता है
अहंकार की दंभ मे तुम, चूर-चूर हो लेकिन
सत्ते की लालच मे तुम्हे झुकना भी आता है..
वो यारों की टोली, वो रिश्तों का माया
वो मिट्टी का घरौंदा, वो खपरैलों का छत
लिए सोंधी सी खुश्बू, वो काग़ज़ का ख़त
वो सांझ की बेला, वो चंदा चकोरी
कोई मुझसे पूछे, क्या मैने है खोया
इक मासूम बच्चा, वो बचपन गँवाया,,
मैं सब कुछ रख दूं गिरवी, वो वक़्त दिला दो तुम
बहुत रोएँ जवां होके,तन्हाई मे छुप-छुप के,फिर
जियें खुलके हर इक लम्हा,बचपन से मिला दो तुम
अहम की ज़िद मे हमने ब्यर्थ जीवन गँवाया है
हमें अपनों ने खोया है,हमने अपनों को भुलाया है
किमत अमुल्य होती है, इक मुस्कान का, लेकिन
ये न उनको समझ आई, न हमने समझ पाया है
ज़िम्मेदारियों के भंवर मे खुद को फसा रखा है
कई दर्द सिने मे हमने, अपने छुपा रखा है
जो कभी देखा था मैने, फ़ुर्सत के आलम मे
वो ख्वाब आँखों मे हमने अब तक बसा रखा है
वफ़ा की चाह मे कभी, गुजर गया सभी हद से
बहुत लाचार होता हूँ, अब जो मिलता हूँ,मैं खुद से
मिले हैं दर्द बेशुमार, वफ़ा की राह लेकिन
कोई शिकायत नहीं मेरी है, ऐ-ज़िंदगी तुम से
खुद ही फँसे भंवर मे, तुम्हे हम क्या पनाह देंगे
साहिल पे आ लगें जब, तुम्हारे काम आ सकेंगे
थोड़ा इंतेज़ार कर लो, गर मुझ पे ऐतवार हो
साथ चल ना सकें तो, तुम्हे मंज़िल दिखा देंगे
अब इल्तिज़ा यही है, के कोई इक़्तिज़ा न हो
इंतेज़ार-ए-यार का फिर,कोई सिलसिला न हो
गुजर रहे हैं सम्भल के,रह-ए-उल्फ़त की गली से अब
इश्क़ के सफ़र में फिर तुम-सा कोई बेवफा न हो
लफ्ज़ उर्दू हैं मेरे लेकिन, रगों मे हिन्दी समाई है,
हूँ वंशज राम का लेकिन, रहीम मेरा ही भाई है,
रंग एक सा दिखा है, सभी के, लहू का लेकिन
कोई कहता मैं सिख हूँ कोई कहता ईसाई है...
सदाये उनकी भी आती है,जो दुनिया से चले जाते हैं,
कभी यादों के ज़रिये, तो कभी ख्वाबों के ज़रिये,
कभी जो लड़खड़ाएँ हम,वो हौसला बढ़ाते हैं
कभी यादों के ज़रिये, तो कभी ख्वाबों के ज़रिये,
ना तुम रहे हम मे, ना अपने आप सा हम हैं
ये आखरी मुलाकात का गम है,तन्हा रात का गम है
रो लेते हैं जी भर के बारिश मे आज कल
ये बरसात का मौसम है किसी की याद का मौसम है
ढोंग रिवाजों का फैला,झूठी रस्मों का बोलबाला है
झूठ के माथे चंदन है, हुआ सच का मुँह काला है
करोड़ों का घोटाला कर भी,ग़रीबों का छीना नीवाला है
माथे पे चंदन घिस घिस के, चोर बना रखवाला है
लुटेरे हो तुम पीढ़ी दर, तुम्हे बस लूटना ही आता है
मनाना तुम कहाँ सीखे, तुम्हे बस रूठना ही आता है
अहंकार की दंभ मे तुम, चूर-चूर हो लेकिन
सत्ते की लालच मे तुम्हे झुकना भी आता है..
Thursday, August 1, 2019
कभी ख्वाबों के ज़रिये....
सदाये उनकी भी आती है,जो दुनिया से चले जाते हैं,
कभी यादों के ज़रिये, तो कभी ख्वाबों के ज़रिये....
कभी यादों के ज़रिये, तो कभी ख्वाबों के ज़रिये....
......इंदर भोले नाथ
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पिय मिलन की आस में,सुध बुध सब बिसराइ है बावरी हो चली बिरहन, मदमस्त चली पुरवाई है आंगन से दहलीज तलक भ्रमण कई कई बार किया कंगन,बिंदी,चूड़ी, क...
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जब चांद चुपके से झील में उतर कर हमें देखेगा जब ठंडी ठंडी हवाएं हमारे कानों में आकर कुछ कह जाएंगी जब परिंदे खामोश होकर हमारी बातें सुनने ...