Wednesday, July 3, 2019

"गुलज़ार गली" भाग-१

"गुलज़ार गलीभाग- 


"तुम्हे जाना तो खुद पे हमें तरस आ गया,
तमाम उम्र यूँही हम खुद को कोसते रहें"............



"गुलज़ार गली" यही नाम था उस गली का....

मैने कभी देखा नहीं था बस सुना था, हर किसी के ज़ुबान पे बस उसी गली का चर्चा रहता "गुलज़ार गली" |

तकरीबन डेढ़ महीना हुआ होगा मुझे यहाँ आए हुए, इस डेढ़ महीने मे ऐसा कोई भी दिन नहीं था, जिस दिन मैने उस गली का ज़िक्र न सुना हो | किसी न किसी के ज़ुबान से  पूरे दिन मे 2 या 3 बार तो सुन ही लेता था उस गली का नाम "गुलज़ार गली" |

आख़िर क्या है उस गली मे आख़िर क्यों इतनी मसहूर है वो गली जो हर कोई उस गली का चर्चा करता रहता है |
मैने कभी किसी से पूछा नहीं,सोचा खुद ही किसी दिन जाकर देख लेंगे आख़िर क्या है उस गली में और क्यों इतनी मसहूर है वो गली |

दोस्तों ये कहानी उस गली की है जो हर रोज, शाम होते ही किसी नई नवेली दुल्हन की तरह सज जाया करती थी|
वो गली जो किसी जन्नत से कम न थी,वो गली जो निगाह को किसी एक जगह ठहरने न देती थी,वो गली जो पलकों को झपकने न देती थी,वो गली जिसे देख दिल धड़कने लगता था,वो गली जिसने लाखों अफ़साने बनाए हुए थें,वो गली जिसने कई दर्द छुपाए हुए थे | वो गली जिसके हर धड़कन से बस यही सदा आती थी........

"कई आह बेचते हैं,हम हो लाचार बेचते हैं,
वो ज़िस्म खरीदते हैं,मगर हम प्यार बेचते हैं"...

क़हानी सुनाने की धुन मे दोस्तों मैं आप सब को अपना परिचय बताना भूल गया | मेरा नाम सुशील मिश्रा है मैं उत्तर प्रदेश का रहने वाला हूँ | मैने हिन्दी से स्नातक किया हुआ है आगे भी पढ़ना चाहता था,मगर पिताजी की हुई अचानक निधन के कारण पूरे घर परिवार की ज़िम्मेदारी मेरे उपर आ गई | क्यों कि भाइयों मे सबसे बड़ा मैं ही था | दो भाई और एक बहन की ज़िम्मेदारी मेरे उपर ही आ गई इसलिए मैं आगे नहीं पढ़ पाया,और नौकरी की तलाश मे यहाँ (******) मे अपने एक रिश्तेदार जो रिश्ते में मेरे भैया लगते थे उन्ही के  पास आ गया | उन्ही की मदद से मुझे यहाँ (******) मे एक प्राइवेट फर्म मे काम मिल गया सुपरवाइजरी का |


क्रमश:......







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