Monday, December 4, 2017

यादों के पन्ने से…..

हर शाम….
नई सुबह का इंतेजार
हर सुबह….
वो ममता का दुलार
ना ख्वाहिश,ना आरज़ू
ना किसी आस पे
ज़िंदगी गुजरती थी…
हर बात….
पे वो जिद्द अपनी
मिलने की….
वो उम्मीद अपनी
था वक़्त हमारी मुठ्ठी मे
मर्ज़ी के बादशाह थे हम
थें लड़ते भी,थें रूठते भी
फिर भी बे-गुनाह थें हम
वो सादगी कहीं खो गई
शराफ़त ने चोला ओढ़ ली
कुछ यूँ…
रफ़्तार ज़िंदगी ने ली
मर्ज़ी ने दम तोड़ दी……….
अल्फ़ाज़ मेरे दिल के…….IBN
Blog-http://merealfaazinder.blogspot.in

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