Monday, November 27, 2017

बाकी न रही अब चाह कोई “इंदर” के सीने मे,
कुछ इस क़दर टूटा है दिल ज़िंदगी को जीने मे…
हर ज़ाम पे जलता है दिल हर रोज शाम को,
पर सच कहूँ तुम्हे यारों मज़ा फिर भी है पीने मे…
………….अल्फ़ाज़ मेरे दिल के

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